Posts

रामचरितमानस में मानव-पर्यावरण संबंध

Image
पर्यावरण आज के समय का चर्चित शब्द है, बल्कि यह वर्तमान में स्त्री, दलित, आदिवासी, बाल, वृद्ध के सदृश अब विमर्श के दायरे में है। इधर औद्योगिक सभ्यता के प्रभाव में इस नए विमर्श को जन्म दिया। समीक्षा और शोध का नया प्रतिमान इससे गढ़ा जा सकता है। जिस प्रकार से स्त्रीवादी समीक्षा में प्रत्येक वस्तु को स्त्रियों की दृष्टि से देखे जाने की कोशिश की जाती है, उसी प्रकार से प्रत्येक वस्तु को पर्यावरण के नजरिए से भी देखे जाने की आवश्यकता है। भारतीय बाजार में पर्यावरण के अनुकूल बनाए गए उत्पादों को ‘इको-मार्क’ दिया जाता है, इसी प्रकार से पर्यावरण के प्रति सजग साहित्य को भी ‘इको-मार्क’ दिए जाने का प्रचलन शुरू किया जाना चाहिए। पर्यावरण के प्रति बढ़ती बेरुखी को कम करने की दिशा में यह असरदार कदम होगा। समय के साथ बदले मानव- पर्यावरण के संबंध को सुधारने की दिशा में यह एक सही शुरुआत हो सकती है। इस औद्योगिक सभ्यता में पलने-बढ़ने वाला मानव सभी को अपनी सुविधा के लिए प्रयोग करने का आदी हो गया है। उसकी लालच जितनी बढ़ रही है, उसमें संवेदना का स्तर उतना ही कम होता जा रहा है। वह लगातार पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहा है,

आओ बसंत सबके जीवन में

Image
आओ बसंत सबके जीवन में नित आओ। जब जब अवधि तुम्हारी आए सबका मन हर्षाओ। आओ बसंत सबके जीवन में नित आओ। रंग बिरंगे फूलों से धरती की सुषमा और बढ़ाओ। आओ बसंत सबके जीवन में नित आओ। कुंज गली और वन उपवन की शोभा में छा जाओ। सबके मन को हर्षित करके स्वयं हर्ष भी पाओ। आओ बसंत सबके जीवन में नित आओ। गेंदा गुड़हल चंप चमेली और सूरजमुखी खिलाओ। बनकर गुलाब की माला तुम धरती को स्वयं सजाओ। आओ बसंत सबके जीवन में नित आओ। उजड़ न जाए धरा यहां हल्के कदमों से जाना। जैसे समय मिले कभी फिर बसंत तुम आ जाना। ©योगेश मिश्र, वर्धा 12 फरवरी,2024 को नवभारत टाइम्स, नागपुर में प्रकाशित 

त्योहार

Image
त्योहार या त्यौहार कौन सा है शुद्ध रूप ... आइए इस शब्द की व्युत्पत्ति समझे जिससे पता चल सके कौन सा रूप शुद्ध है।  त्योहार : यह एक तद्भव शब्द है, जो कि संस्कृत के दो शब्दों के योग से बना है : तिथि और वार। ✍️✍️ तिथिवार >तिहिवार > तिहवार > तिवहार > तेवहार और उससे बना त्योहार। 🖊️🖊️ * नोट : लेकिन कुछ चमत्कारी भाषाविदों ने इसी प्रयोग को आधार बना कर त्योहार का त्यौहार भी बना दिया है।🤩😅  वैसे भोजपुरी में तिहुआर, और अवधी में तेवहार तथा मैथिली में तेहवार कहा जाता है। साथ ही अन्य भारतीय भाषाओं गुजराती में तहेवार, पंजाबी में तिउवार आदि उच्चरित किया जाता है।

मानस का हंस : समीक्षात्मक अध्ययन

Image
  ‘मानस का हंस’ प्रसिद्ध लेखक अमृतलाल नागर का चर्चित उपन्यास है। यह उपन्यास भक्तिकालीन रामभक्त सुप्रसिद्ध कवि गोस्वामी तुलसीदास के जीवन पर आधारित है। अमृतलाल नागर ने ‘मानस का हंस’ को लिखकर जीवनीपरक उपन्यासों को पहचान दिलाने का कार्य किया। यह सब उनके गहरे अध्ययन, मनन और चिंतन के द्वारा संभव हो सका है। कहने का लखनवी अंदाज तथा किस्सागोई शैली पाठक को आदि से अंत तक बांधने का कार्य करती है। तथ्य के साथ ही कल्पनाधारित घटनाओं की रोचकता भी अप्रतिम है; हालांकि नागर जी ने ‘मोहिनी-प्रसंग’ की कल्पना करके कथानक को नया मोड़ दे दिया है, क्योंकि तुलसी की कोई भी प्रमाणिक जीवनी अभी भी उपलब्ध नहीं है। तथापि फिल्मांकन के उद्देश्य लिखे जा रहे इस उपन्यास में ऐसे रोचक प्रसंगों को उठाया जाना स्वाभाविक ही है। नागर जी इस उपन्यास में अपनी प्रतिभा ,  अनुभूति सामर्थ्य और शिल्प वैशिष्ट्य से सभी को आकृष्ट कर लेते हैं। किंवदंतियों से बचते हुए नागर जी ने तुलसी-साहित्य में उपलब्ध संकेतों के आधार पर कथानक को आगे बढ़ाने का कार्य किया है। उन्होंने व्यापक फलक पर तुलसीदास के समय की सामाजिक ,  आर्थिक तथा सांस्कृतिक परिस्थिति

उत्साह एवं उमंग के पर्व होली का रंग

Image
 बदलती जीवन पद्धतियों के बीच हमारे लोक पर्वों की धुन भी बदल सी गई है। या और स्पष्ट शब्दों में कहें तो लोग का रंग फीका सा पड़ता जा रहा है। आखिर इन लोक-रंगों के फीका पड़ने का कारण क्या है? आइए होली के रंगों के सहारे पुनः इन दुनिया को रंगने का कार्य करें, लोकरंग को जीवंत बनाए। होली भारत के बड़े पर्वों में से एक है, जिसके रंग के छीटे सभी को अपने में रंग लेते हैं। यह एक ऐसा पर्व है जो अपनी सीमा का अतिक्रमण करके जाति, धर्म, स्थान से आगे निकल चुका है। वैसे तो यह मुख्यतः हिंदू संस्कृति से जुड़ा हुआ पर्व है, लेकिन आज होली के अवसर पर रंगों की बारिश हिंदू संस्कृति से इतर समुदाय के लोगों को भी समान रूप से प्रफुल्लित करती है। होली इसीलिए उल्लास और उमंग का पर्व है। यह आपसी वैमनस्य को दूर कर भाई-चारे और मिलन-पर्व के रूप में ख्यातिलब्ध है। हम सभी प्रकार की द्वेष को मिटाकर अपनी राग को इस अवसर पर रंग लगाकर प्रदर्शित करते हैं।  सभी भारतीय पर्वों की आरंभ का अपना इतिहास है। जैसे दीपावली का पर्व चौदह वर्ष वनवास के पश्चात रावण को विजित कर राम के अपने जन्मभूमि अयोध्या वापस आने पर उनके स्वागत का पर्व है, उसी प

‘अपने पैरों पर’ उपन्यास को पढ़ते हुए

Image
शिक्षा का उद्देश्य जब से नौकरी पाना हो गया, तब से बाजार यह तय करना शुरू किया कि हमें क्या पढ़ना चाहिए? हम अपनी रुचि को दरकिनार करके रोजगारपरक शिक्षा एक के बाद एक लेने को उत्सुक रहते हैं; लेकिन क्या नौकरी के पीछे लंबी कतार में खड़े होने में हमारा दम नहीं घुटता? आज बाजार ने शिक्षा को कैसे प्रोडक्ट बनाकर बेचना शुरू किया है, इसका ऑपरेशन करता है उपन्यास- ‘अपने पैरों पर’। आखिर कौन है जो अपने पैरों पर खड़ा नहीं होना चाहता? सभी के मां-बाप या हमारी स्वयं की भी इच्छा आखिर अपने पैरों पर खड़े होने की होती है। इसी चक्कर में पीठ पर भारी भरकम बोझ का बैग लेकर हम शुरू से ही भागना शुरू कर देते हैं। एक इंजीनियर के मस्तिष्क के उपजी यह कथा पूरे तकनीकी क्षेत्र की शिक्षा के पड़ावों की  बाकायदा जांच पड़ताल करती नजर आती है। पेशे से इंजीनियर भवतोष पांडेय अपने इस उपन्यास में समीक्षक का कार्य भी अपनी टिप्पणियां देकर करते चलते हैं। उन्होंने कथानक के बीच में अपनी राय को बराबर प्रकट किया है। इसके लिए वे भारतीय मध्यवर्ग का चयन करते हैं।  आज भारतीय समाज में सर्वाधिक यातना कोई खेल रहा है तो वह है मध्यवर्गीय समाज, जो

युवाओं के मसीहा : स्वामी विवेकानंद

Image
भारत में न जाने कितने युवा पैदा हुए, लेकिन ऐसा क्या था उस युवा में जिसके जन्मदिन को हम ‘युवा दिवस’ के रुप में मनाते हैं। या यूं कहें कि उसने ऐसे कौन से कार्य किए जिससे वह आज भी हम युवाओं के प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। जब कोई व्यक्ति अपने समय की समस्याओं से सीधे टकराकर मानवता के लिए पथ प्रदर्शित करने का कार्य करता है तो वह चिरस्मरणीय बन जाता है। ऐसे समय में जब दुनिया हमें नकारात्मक नजरिए से देख रही थी, हम उसके लिए अशिक्षित-असभ्य थे। तब ‘उठो जागो और लक्ष्य तक पहुंचे बिना न रुको’ का नारा देकर भारतीय जनमानस में नवचेतना का संचार करने वाला वहीं युवा था, जिसे आगे चलकर दुनिया ने ‘स्वामी विवेकानंद’ के नाम से जाना। भारतीय धर्म, दर्शन, ज्ञान एवं संस्कृति के स्वर से दुनिया को परिचित कराने वाले युवा ही हम सभी का प्रेरक हो सकता है। अपनी अपार मेधा शक्ति के चलते उसने न केवल ‘अमेरिकी धर्म संसद’ में अपनी धर्म-संस्कृति के ज्ञान का डंका बजाकर उसकी श्रेष्ठता को प्रमाणित किया, अपितु विश्व की भारत के प्रति दृष्टि में बदलाव को रेखांकित किया। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो “स्वामी विवेकानंद का धार्मिक सम्मेलन मे

ज्ञानपीठ पुरस्कार

 हिंदी साहित्य में प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्तकर्त्ता कवि सुमित्रानंदन पंत हैं। उन्हें यह पुरस्कार 'चिदंबरा' पर सन 1968 ई. में मिला।

शिक्षा का महत्त्व और निराला के उपन्यास

Image
शिक्षा का महत्त्व और निराला के उपन्यास  योगेश कुमार मिश्र, शोधार्थी,  हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र- 442001   (प्रकाशित शोध पत्र- मई 2021) Setu 🌉 सेतु * ISSN 2475-1359 * * Bilingual monthly journal published from Pittsburgh, USA ::  पिट्सबर्ग अमेरिका से प्रकाशित द्वैभाषिक मासिक *  https://www.setumag.com/2021/05/Education-and-Nirala.html?m=1

हिंदी साहित्य : शोध प्रस्ताव की रूपरेखा / सिनाप्सिस तैयार करने के तरीके

Image
  शोध प्रस्ताव की रूपरेखा   निराला के गद्य साहित्य में शिक्षा - दृष्टि प्रस्तुतकर्ता योगेश कुमार मिश्र   अनुक्रमांक : 123456 सत्र : 2019-20   निराला के गद्य साहित्य में शिक्षा-दृष्टि   प्रस्तावना :-   हिंदी साहित्य जगत में सूर्यकांत त्रिपाठी ‘ निराला ’ का साहित्य विविधताओं से परिपूर्ण है । निराला ने हिंदी साहित्य के विविध आयामों को अपने सृजन से समृद्ध किया है । यही कारण है कि प्रायः आलोचक या पाठक उनकी कुछ ही विधाओं तक सीमित रह जाते हैं । उनके संपूर्ण साहित्य का अवलोकन नहीं कर पाते हैं । निराला काव्य-सृजन में जितने सफल रहे हैं , उतनी ही सफलता उन्होंने गद्य लेखन में भी हासिल की है । यह बात अलग है कि उन्हें सर्वाधिक ख्याति कवि रूप में ही मिली । निराला के उपन्यासों , कहानियों तथा निबंधों पर अब भी विचार करने की जरूरत है ; क्योंकि जिन लोगों ने निराला के गद्य साहित्य पर लेखन भी किया वे ऊपरी सतह से ही गुजर गए हैं । अतः उनके गद्य साहित्य में निहित विचारों को प्रकाश में लाने की आवश्यकता बनी हुई है । उनके उपन्यासों को रोमांटिक उपन्यास या अग्रिम भुग