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गाँवों में घर करता शहर : एक दृष्टि

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  आधुनिक जीवन प्रणाली की देन ही इसे कह सकते हैं कि बचपन में ही सपनों का बोझ लादे शिक्षा के लिए जननी तथा जन्मभूमि से विलग होना पड़ता है। क्योंकि शहरी शिक्षा इस स्वप्न पूर्ति में अधिक कारगर साबित हो रही है। सोचने समझने की पर्याप्त दृष्टि विकसित होने के बाद का संभवतः यह पहला अवसर है जो इतने समय तक गांव में रुकने को मिला। वरना एक ऐसी भीड़ का हिस्सा बनकर ही शहर में जीना पड़ता है जहां कितना भी दौड़ लो, लेकिन पाओगें खुद को पीछे ही।  खैर  विगत कुछ महीनों से गाँव में रहते हुए उन दृश्यों की ओर दृष्टि आकृष्ट हुई , जो किसी भी भूभाग को गाँव की संज्ञा प्रदान करते हैं। आज शहरीकरण का प्रकोप इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि भारतीय गांवों का अस्तित्व खतरे में नजर आता है। स्थितियां इतनी भयावह होती जा रही हैं कि गांवों में भी गांव खोजने की नौबत आ गयी है। वाह्य संरचना और आपसी सौहार्द दोनों ही स्तरों पर। बढ़ते संसाधनों के चलते लोगो की स्वनिर्भरता आज लोगों को अपने तक सीमित कर रही है। नई पद्धतियों के चलते आज परंपरागत कृषि साधनों का विलोप होता जा रहा है, जो किसी भी गांव के जीवंत रूप के लिए आवश्यक होते हैं। बैलों से कृषि क