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रामचरितमानस में मानव-पर्यावरण संबंध

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पर्यावरण आज के समय का चर्चित शब्द है, बल्कि यह वर्तमान में स्त्री, दलित, आदिवासी, बाल, वृद्ध के सदृश अब विमर्श के दायरे में है। इधर औद्योगिक सभ्यता के प्रभाव में इस नए विमर्श को जन्म दिया। समीक्षा और शोध का नया प्रतिमान इससे गढ़ा जा सकता है। जिस प्रकार से स्त्रीवादी समीक्षा में प्रत्येक वस्तु को स्त्रियों की दृष्टि से देखे जाने की कोशिश की जाती है, उसी प्रकार से प्रत्येक वस्तु को पर्यावरण के नजरिए से भी देखे जाने की आवश्यकता है। भारतीय बाजार में पर्यावरण के अनुकूल बनाए गए उत्पादों को ‘इको-मार्क’ दिया जाता है, इसी प्रकार से पर्यावरण के प्रति सजग साहित्य को भी ‘इको-मार्क’ दिए जाने का प्रचलन शुरू किया जाना चाहिए। पर्यावरण के प्रति बढ़ती बेरुखी को कम करने की दिशा में यह असरदार कदम होगा। समय के साथ बदले मानव- पर्यावरण के संबंध को सुधारने की दिशा में यह एक सही शुरुआत हो सकती है। इस औद्योगिक सभ्यता में पलने-बढ़ने वाला मानव सभी को अपनी सुविधा के लिए प्रयोग करने का आदी हो गया है। उसकी लालच जितनी बढ़ रही है, उसमें संवेदना का स्तर उतना ही कम होता जा रहा है। वह लगातार पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहा है,