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तुलसीदास की स्त्रीवादी दृष्टि : पुनर्विचार

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  समय के साथ सब कुछ बदलता रहता है , बावजूद इसके महापुरुषों के वक्तव्य समय सापेक्ष अर्थ ग्रहण करने की ताकत रखते हैं। उनके विचारों में निहित यह शक्ति उन्हें स्मरण करने के लिए पर्याप्त है। हमारे महापुरुषों के वैचारिक चिंतन की गहनता का स्वाभाविक परिणाम यह है कि वे सर्वकालिक तथा सार्वभौमिक होते हैं। उनके विचार देशकाल की सीमाओं में बंधे हुए नहीं होते हैं , जबकि वे एक निश्चित भूभाग के निश्चित कालखंड में कहें या लिखे गए होते हैं। यह प्रवृत्ति जब किसी साहित्यकार में निहित होती है तो निश्चित ही उसकी कृति कालजई कृति बनती है।   भारतीय साहित्य के महान व्यक्तित्वों को जब भी रेखांकित किया जाएगा , तो उनमें तुलसीदास का नाम अवश्य होगा। तुलसीदास मूलतः अवधी के कवि हैं , किन्तु उन्होंने अपने समय में प्रचलित काव्यभाषा ब्रज में भी रचना की है। तुलसीदास की अमर काव्यकृति रामचरितमानस है। यदि हम इस पर विचार करें तो सहज ही पाएंगे कि रामचरितमान