युवाओं के मसीहा : स्वामी विवेकानंद

भारत में न जाने कितने युवा पैदा हुए, लेकिन ऐसा क्या था उस युवा में जिसके जन्मदिन को हम ‘युवा दिवस’ के रुप में मनाते हैं। या यूं कहें कि उसने ऐसे कौन से कार्य किए जिससे वह आज भी हम युवाओं के प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। जब कोई व्यक्ति अपने समय की समस्याओं से सीधे टकराकर मानवता के लिए पथ प्रदर्शित करने का कार्य करता है तो वह चिरस्मरणीय बन जाता है। ऐसे समय में जब दुनिया हमें नकारात्मक नजरिए से देख रही थी, हम उसके लिए अशिक्षित-असभ्य थे। तब ‘उठो जागो और लक्ष्य तक पहुंचे बिना न रुको’ का नारा देकर भारतीय जनमानस में नवचेतना का संचार करने वाला वहीं युवा था, जिसे आगे चलकर दुनिया ने ‘स्वामी विवेकानंद’ के नाम से जाना।

भारतीय धर्म, दर्शन, ज्ञान एवं संस्कृति के स्वर से दुनिया को परिचित कराने वाले युवा ही हम सभी का प्रेरक हो सकता है। अपनी अपार मेधा शक्ति के चलते उसने न केवल ‘अमेरिकी धर्म संसद’ में अपनी धर्म-संस्कृति के ज्ञान का डंका बजाकर उसकी श्रेष्ठता को प्रमाणित किया, अपितु विश्व की भारत के प्रति दृष्टि में बदलाव को रेखांकित किया। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो “स्वामी विवेकानंद का धार्मिक सम्मेलन में भाषण में भारत की स्थिति में उस समय परिवर्तन किया, जब संपूर्ण विश्व का दृष्टिकोण भारत के प्रति नकारात्मक था।”

     

      आज भारत का हर युवा स्वामी विवेकानंद के शिकागो में दिए गए भाषण से परिचित है, लेकिन इतना ही नहीं उन्होने इससे इतर भी बहुत कुछ किया है जिस पर हमें दृष्टि डालनी चाहिए। हमें उनके साहित्य को पढ़ना चाहिए जिन्होंने कभी कहा था कि “पुस्तकालय महान व्यायामशाला है, जहां हमें मन को स्वस्थ करने के लिए जाना चाहिए।” वास्तव में युवाओं के लिए पुस्तक मानसिक व्यायाम शाला ही है। स्वामी विवेकानंद को पुस्तकों से अतिशय प्रेम रहा और उनकी एकाग्रता के अनेक रोचक प्रश्न जो हमें यदा-कदा पढ़ने सुनने को मिलते रहते हैं। स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि “खुद को कमजोर समझना पाप है” जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं कर सकते तब तक आप भगवान पर भी विश्वास नहीं कर सकते। 

“मैं उस प्रभू का सेवक हूँ, अज्ञानी लोग जिसे मनुष्य कहते हैं” कि मान्यता वाले स्वामी विवेकानंद ‘मानवता की सेवा व जन परोपकार’ की भावना से ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की। इससे जुड़े युवा शिक्षित संन्यासी भारतीय किसानों तथा मजदूरों के बच्चों को उन्हीं के गांव में रहकर शिक्षा देते थे, वह भी निःशुल्क। बदले में ग्रामवासियों को केवल उनके भोजन की व्यवस्था करनी होती थी। भारतीयों की आर्थिक स्थिति भी पर इनका ध्यान था। इसलिए युवाओं को उद्यमशील बनाना चाहते थे। इस प्रकार हम देखें कि स्वामी विवेकानंद कितने क्रियाशील थे, उनका मानना था कि ‘यदि हमें सौ निष्ठावान कार्यकर्ता मिल जाए तो मैं भारत की कायापलट कर सकता हूं।” युवाओं की शक्ति की पहचान उन्हे थी। वे बराबर उनकी दशा-दिशा को सुधारने के लिए प्रयासरत रहे। इन्होंने नारियों के सम्मान की बात कही। उनका मानना था कि “बिना स्त्रियों की दशा में परिवर्तन किए हम विश्व कल्याण की बात नहीं कर सकते।” सर्वधर्म समभाव तथा वसुधैव कुटुंबकम का मूल मंत्र लेकर संपूर्ण विश्व में उसे व्याप्त करने वाले स्वामी विवेकानंद सभी धर्मों के लक्ष्य को एक ही मानते हैं। ठीक वैसे, जैसे सभी नदियों का लक्ष्य सागर में मिलना है, उसी प्रकार सभी धर्म हमें मनुष्यत्व की ओर ले जाते हैं। धर्मों की विविधता को भी वे उसी प्रकार से देखते हैं, जैसे विविध मार्गों के होने से यातायात की सुगमता।

शिक्षा को लेकर स्वामी विवेकानंद काफी चिंतनशील थे। उनका मानना है कि ‘स्वस्थ मस्तिष्क में ही स्वस्थ शरीर निवास करता है।’ अतः शिक्षा को अर्जित करने के लिए मस्तिष्क का स्वस्थ होना अति आवश्यक है। आज के गिरते शिक्षा स्तर का एक कारण सोशल साइट्स पर उपलब्ध कूड़ा-कचरा भी है, जो मानव मस्तिष्क की मेमोरी के बड़े भाग को कवर करके रखता है। “शिक्षा मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता कि अभिव्यक्ति है।” स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि ‘यदि शिक्षा का अर्थ सूचनाओं से होता तो पुस्तकालय संसार के सर्वश्रेष्ठ संत बन जाते, विश्वकोश ऋषि होते।’ वे युवाओं को ऐसी शिक्षा देने के पक्षधर रहे जो उनके मानस की शक्ति को बढ़ाकर उसमें उत्तम विचार पैदा कर सकें जिससे ये युवा स्वावलंबी बन सकें।

युवाओं के प्रेरक स्वामी विवेकानंद आत्ममंथन हेतु बराबर प्रेरित करते हैं। ‘अपने दीपक आप बनों’ की मान्यता वाले स्वामी विवेकानंद का प्रसिद्ध कथन है कि ‘दिन में एक बार व्यक्ति को स्वयं से मिलना चाहिए, वरना वह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति से मिलने से वंचित रह जाएगा।’ आधुनिक युवा जब भी स्वामी विवेकानंद के समीप जाएगा, उनके विचारों पर दृष्टि डालेगा तो वह कभी भी खुद को हताश या निराश नहीं पाएगा या यह कहें कि उसे कभी भी खाली हाथ नहीं लौटना पड़ेगा। अतः हम सभी को विवेकानंद के विचार तथा उनके साहित्य को सँजोकर रखना होगा, जिससे हम बेहतर व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र के निर्माण में अपनी समिधा को अर्पित कर सकें।

@ योगेश मिश्र, असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, विवेकानंद ग्रामोद्योग महाविद्यालय, दिबियापुर औरैया

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