आओ बसंत सबके जीवन में

आओ बसंत सबके जीवन में

नित आओ।

जब जब अवधि तुम्हारी आए सबका मन हर्षाओ।

आओ बसंत सबके जीवन में

नित आओ।


रंग बिरंगे फूलों से धरती की

सुषमा और बढ़ाओ।

आओ बसंत सबके जीवन में

नित आओ।


कुंज गली और वन उपवन की

शोभा में छा जाओ।

सबके मन को हर्षित करके

स्वयं हर्ष भी पाओ।

आओ बसंत सबके जीवन में

नित आओ।


गेंदा गुड़हल चंप चमेली

और सूरजमुखी खिलाओ।

बनकर गुलाब की माला तुम

धरती को स्वयं सजाओ।

आओ बसंत सबके जीवन में

नित आओ।


उजड़ न जाए धरा यहां

हल्के कदमों से जाना।

जैसे समय मिले कभी

फिर बसंत तुम आ जाना।


©योगेश मिश्र, वर्धा

12 फरवरी,2024 को नवभारत टाइम्स, नागपुर में प्रकाशित 


Comments

Popular posts from this blog

तारसप्तक के कवियों को याद करने की ट्रिक

छायावादी कथा-साहित्य

हिंदी कविता का विकास और निराला की कविता