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उत्साह एवं उमंग के पर्व होली का रंग

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 बदलती जीवन पद्धतियों के बीच हमारे लोक पर्वों की धुन भी बदल सी गई है। या और स्पष्ट शब्दों में कहें तो लोग का रंग फीका सा पड़ता जा रहा है। आखिर इन लोक-रंगों के फीका पड़ने का कारण क्या है? आइए होली के रंगों के सहारे पुनः इन दुनिया को रंगने का कार्य करें, लोकरंग को जीवंत बनाए। होली भारत के बड़े पर्वों में से एक है, जिसके रंग के छीटे सभी को अपने में रंग लेते हैं। यह एक ऐसा पर्व है जो अपनी सीमा का अतिक्रमण करके जाति, धर्म, स्थान से आगे निकल चुका है। वैसे तो यह मुख्यतः हिंदू संस्कृति से जुड़ा हुआ पर्व है, लेकिन आज होली के अवसर पर रंगों की बारिश हिंदू संस्कृति से इतर समुदाय के लोगों को भी समान रूप से प्रफुल्लित करती है। होली इसीलिए उल्लास और उमंग का पर्व है। यह आपसी वैमनस्य को दूर कर भाई-चारे और मिलन-पर्व के रूप में ख्यातिलब्ध है। हम सभी प्रकार की द्वेष को मिटाकर अपनी राग को इस अवसर पर रंग लगाकर प्रदर्शित करते हैं।  सभी भारतीय पर्वों की आरंभ का अपना इतिहास है। जैसे दीपावली का पर्व चौदह वर्ष वनवास के पश्चात रावण को विजित कर राम के अपने जन्मभूमि अयोध्या वापस आने पर उनके स्वागत का पर्व ...

‘अपने पैरों पर’ उपन्यास को पढ़ते हुए

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शिक्षा का उद्देश्य जब से नौकरी पाना हो गया, तब से बाजार यह तय करना शुरू किया कि हमें क्या पढ़ना चाहिए? हम अपनी रुचि को दरकिनार करके रोजगारपरक शिक्षा एक के बाद एक लेने को उत्सुक रहते हैं; लेकिन क्या नौकरी के पीछे लंबी कतार में खड़े होने में हमारा दम नहीं घुटता? आज बाजार ने शिक्षा को कैसे प्रोडक्ट बनाकर बेचना शुरू किया है, इसका ऑपरेशन करता है उपन्यास- ‘अपने पैरों पर’। आखिर कौन है जो अपने पैरों पर खड़ा नहीं होना चाहता? सभी के मां-बाप या हमारी स्वयं की भी इच्छा आखिर अपने पैरों पर खड़े होने की होती है। इसी चक्कर में पीठ पर भारी भरकम बोझ का बैग लेकर हम शुरू से ही भागना शुरू कर देते हैं। एक इंजीनियर के मस्तिष्क के उपजी यह कथा पूरे तकनीकी क्षेत्र की शिक्षा के पड़ावों की  बाकायदा जांच पड़ताल करती नजर आती है। पेशे से इंजीनियर भवतोष पांडेय अपने इस उपन्यास में समीक्षक का कार्य भी अपनी टिप्पणियां देकर करते चलते हैं। उन्होंने कथानक के बीच में अपनी राय को बराबर प्रकट किया है। इसके लिए वे भारतीय मध्यवर्ग का चयन करते हैं।  आज भारतीय समाज में सर्वाधिक यातना कोई खेल रहा है तो वह है मध्यवर्गीय ...

युवाओं के मसीहा : स्वामी विवेकानंद

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भारत में न जाने कितने युवा पैदा हुए, लेकिन ऐसा क्या था उस युवा में जिसके जन्मदिन को हम ‘युवा दिवस’ के रुप में मनाते हैं। या यूं कहें कि उसने ऐसे कौन से कार्य किए जिससे वह आज भी हम युवाओं के प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। जब कोई व्यक्ति अपने समय की समस्याओं से सीधे टकराकर मानवता के लिए पथ प्रदर्शित करने का कार्य करता है तो वह चिरस्मरणीय बन जाता है। ऐसे समय में जब दुनिया हमें नकारात्मक नजरिए से देख रही थी, हम उसके लिए अशिक्षित-असभ्य थे। तब ‘उठो जागो और लक्ष्य तक पहुंचे बिना न रुको’ का नारा देकर भारतीय जनमानस में नवचेतना का संचार करने वाला वहीं युवा था, जिसे आगे चलकर दुनिया ने ‘स्वामी विवेकानंद’ के नाम से जाना। भारतीय धर्म, दर्शन, ज्ञान एवं संस्कृति के स्वर से दुनिया को परिचित कराने वाले युवा ही हम सभी का प्रेरक हो सकता है। अपनी अपार मेधा शक्ति के चलते उसने न केवल ‘अमेरिकी धर्म संसद’ में अपनी धर्म-संस्कृति के ज्ञान का डंका बजाकर उसकी श्रेष्ठता को प्रमाणित किया, अपितु विश्व की भारत के प्रति दृष्टि में बदलाव को रेखांकित किया। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो “स्वामी विवेकानंद का धार्मिक सम्मेलन मे...

ज्ञानपीठ पुरस्कार

 हिंदी साहित्य में प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्तकर्त्ता कवि सुमित्रानंदन पंत हैं। उन्हें यह पुरस्कार 'चिदंबरा' पर सन 1968 ई. में मिला।

शिक्षा का महत्त्व और निराला के उपन्यास

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शिक्षा का महत्त्व और निराला के उपन्यास  योगेश कुमार मिश्र, शोधार्थी,  हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र- 442001   (प्रकाशित शोध पत्र- मई 2021) Setu 🌉 सेतु * ISSN 2475-1359 * * Bilingual monthly journal published from Pittsburgh, USA ::  पिट्सबर्ग अमेरिका से प्रकाशित द्वैभाषिक मासिक *  https://www.setumag.com/2021/05/Education-and-Nirala.html?m=1

हिंदी साहित्य : शोध प्रस्ताव की रूपरेखा / सिनाप्सिस तैयार करने के तरीके

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  शोध प्रस्ताव की रूपरेखा   निराला के गद्य साहित्य में शिक्षा - दृष्टि प्रस्तुतकर्ता योगेश कुमार मिश्र   अनुक्रमांक : 123456 सत्र : 2019-20   निराला के गद्य साहित्य में शिक्षा-दृष्टि   प्रस्तावना :-   हिंदी साहित्य जगत में सूर्यकांत त्रिपाठी ‘ निराला ’ का साहित्य विविधताओं से परिपूर्ण है । निराला ने हिंदी साहित्य के विविध आयामों को अपने सृजन से समृद्ध किया है । यही कारण है कि प्रायः आलोचक या पाठक उनकी कुछ ही विधाओं तक सीमित रह जाते हैं । उनके संपूर्ण साहित्य का अवलोकन नहीं कर पाते हैं । निराला काव्य-सृजन में जितने सफल रहे हैं , उतनी ही सफलता उन्होंने गद्य लेखन में भी हासिल की है । यह बात अलग है कि उन्हें सर्वाधिक ख्याति कवि रूप में ही मिली । निराला के उपन्यासों , कहानियों तथा निबंधों पर अब भी विचार करने की जरूरत है ; क्योंकि जिन लोगों ने निराला के गद्य साहित्य पर लेखन भी किया वे ऊपरी सतह से ही गुजर गए हैं । अतः उनके गद्य साहित्य में निहित विचारों को प्रकाश में लाने की आवश्यकता बनी हुई है । उनके उपन्यासों को र...