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तुलसीदास की स्त्रीवादी दृष्टि : पुनर्विचार

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  समय के साथ सब कुछ बदलता रहता है , बावजूद इसके महापुरुषों के वक्तव्य समय सापेक्ष अर्थ ग्रहण करने की ताकत रखते हैं। उनके विचारों में निहित यह शक्ति उन्हें स्मरण करने के लिए पर्याप्त है। हमारे महापुरुषों के वैचारिक चिंतन की गहनता का स्वाभाविक परिणाम यह है कि वे सर्वकालिक तथा सार्वभौमिक होते हैं। उनके विचार देशकाल की सीमाओं में बंधे हुए नहीं होते हैं , जबकि वे एक निश्चित भूभाग के निश्चित कालखंड में कहें या लिखे गए होते हैं। यह प्रवृत्ति जब किसी साहित्यकार में निहित होती है तो निश्चित ही उसकी कृति कालजई कृति बनती है।   भारतीय साहित्य के महान व्यक्तित्वों को जब भी रेखांकित किया जाएगा , तो उनमें तुलसीदास का नाम अवश्य होगा। तुलसीदास मूलतः अवधी के कवि हैं , किन्तु उन्होंने अपने समय में प्रचलित काव्यभाषा ब्रज में भी रचना की है। तुलसीदास की अमर काव्यकृति रामचरितमानस है। यदि हम इस पर विचार करें तो सहज ही पाएंगे कि र...

हिंदी कविता का विकास और निराला की कविता

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हिंदी  कविता का विकास और निराला की कविता                                                                                   योगेश कुमार मिश्र, एम.फिल. (जूनियर रिसर्च फेलो - विश्वविद्यालय अनुदान आयोग)  रीतिकाल की काव्य परम्परा का विकास तब अवरुद्ध हुआ ,  जब पूरे देश में अंग्रेजों का शासन प्रभावी हुआ। देशी - रियासतों का उसमें विलय हो जाने से ,  अब उन रियासतों के सहारे जीने वाले कवि भी न रहे और जब उनका खाते न थे, तो उनकी गाते भी कैसे ?  इस प्रकार  ‘ जिसका खाना, उसका गाना ’  की अवधारणा बंद हुई ,  तो एक विराट चेतना संपन्न साहित्य का प्राकट्य हुआ। यह स्वाभाव...

छायावादी कथा-साहित्य

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छायावादी कथा-साहित्य   (योगेश कुमार मिश्र, शोधार्थी , हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग  महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा महाराष्ट्र 442001) खड़ी बोली हिंदी के विकास के चरमोत्कर्ष के रूप में छायावाद अपनी पहचान बनाता है, यद्यपि छायावादी साहित्य को स्थापित होने में समय लगा| उसके सभी साहित्यकारों को अपने साहित्य को स्थापित करने के लिए संघर्ष करना पड़ा| अपने सृजन का स्वयं स्पष्टीकरण देना पड़ा, किंतु आज छायावादी साहित्य की महत्ता को सभी स्वीकार चुके हैं| छायावादी साहित्य का खड़ीबोली के विकास में अहम योग है| उसने अनेक संभावनाओं को जन्म दिया, जो हिंदी साहित्य को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में सफल रहे| यदि हम छायावादी साहित्य को केवल काव्य तक ही सीमित न समझे, तो अन्य विधाओं में भी छायावादी साहित्य अपनी पहचान को कायम करता है| छायावाद के सभी बड़े रचनाकारों ने कविता की साथ कहानी, उपन्यास, निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, नाटक इत्यादि अनेक विधाओं को अपने सृजन से समृद्ध किया| जयशंकर प्रसाद ने कविता के साथ-साथ नाटकों और कथा साहित्य में भी समान रूप से ख्याति अ...

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और राष्ट्रभाषा हिंदी

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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और राष्ट्रभाषा हिंदी (विजय दर्पण टाइम्स मेरठ 31 जनवरी 2020) Youtube video https://youtu.be/3vSVIgjYx9k?si=PN9sS6Ox3XS5BFCk देश दुनिया में जिस प्रकार से महात्मा गांधी का 150 वां जयंती वर्ष मनाया गया, इससे स्पष्ट रूप से गांधी की महत्ता प्रमाणित होती है। साथ ही यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि दुनिया जैसे-जैसे विनाश के कगार पर पहुँचती जाएगी, वैसे-वैसे गांधी की प्रासंगिकता बढ़ती जाएगी। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने पूरी दुनिया को अपनी शक्ति का एहसास दिलाया, सत्य और अहिंसा के द्वारा अनेक असाधारण कार्यों को कर दिखाया, पूरी दुनिया में चर्चित हुआ एवं भारत में राष्ट्रपिता के नाम से अभिहित हुआ, उसकी हार्दिक इच्छा थी कि ‘हिंदी’ भारत की राष्ट्रभाषा बने। गांधी का हिंदी प्रेम देखना है तो आपको 20 अप्रैल 1935 को इंदौर में हिंदी साहित्य सम्मेलन के 24वें अधिवेशन पर दृष्टि डालनी होगी, जिसमें सभापति के पद से गांधी ने यह जाहिर कर दिया था कि राष्ट्रभाषा बने या न बने हिंदी को मैं छोड़ नहीं सकता। यद्यपि इसी वक्तव्य में उन्होंने अपने हिंदी ज्ञान की ओर भी संकेत करते हुए ...

कलम का सम्राट : मुंशी प्रेमचंद

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  कलम का सम्राट : मुंशी प्रेमचंद             योगेश कुमार मिश्र        एक ऐसा साहित्यकार जिसने अपने संपूर्ण जीवन को कलम के साथ बिताया और उसकी पहचान उसकी कलम में निहित है। कलम की ताकत से उसने हिंदी साहित्य पर अपना साम्राज्य स्थापित किया, उसे यदि कलम का सम्राट कहा जाय तो अतिशयोक्ति न होगी।                     मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कलम की ताकत से समाज को निर्देशित करने का कार्य किया। यदि हम विधाओं की विविधता के आधार पर प्रेमचंद को देखें तो वे मुख्यतः कथाकार के रूप में ही दिखाई पड़ेंगे, लेकिन विषय की विविधता के आधार पर उनके साहित्य का मूल्यांकन करें तो मानव जीवन का कोई ऐसा पहलू नहीं होगा जो उनकी दृष्टि से ओझल रह गया हो। कहने का आशय यह कि सीमित विधा में ही असीम पहलुओं को चित्रित करने का कार्य मुंशी प्रेमचंद ने किया।           मुंशी प्रेमचंद की सहानुभूति समाज के प्रत्येक वर...

नियति : मेरी प्रथम कविता

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विजय दर्पण टाइम्स 15 जून 2019 को प्रकाशित  मेरी प्रथम कविता : नियति  योगेश कुमार मिश्र, प्रयागराज उत्तर प्रदेश 

उपन्यासकार निराला : 'अलका' उपन्यास के संदर्भ में

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उपन्यासकार निराला :  ' अ लका '  उपन्यास के  संदर्भ में निराला ऐसे उपन्यासकार के रूप में सामने आते हैं, जिनके पात्र जब गांव छोड़कर शहर जाते हैं, तो उनका उद्देश्य व्यवसाय नहीं, शिक्षार्जन होता है। इतना ही नहीं, वे अपने पात्रों की अधूरी शिक्षा को फिर से आगे बढ़ाते हैं। वे शहर से शिक्षित होकर गाँव लौटते हैं, तो लोगों को साक्षर बनाने का प्रयास करते हैं। उनके द्वारा साक्षरता अभियान के संदर्भ में दिए गए विचार आज भी प्रासंगिक हैं, ‘अलका’ का विजय कहता है कि- “जो भीख भगवान के नाम पर भिक्षुकों को दी जाती है, प्रतिदिन यदि उतना अन्न निकालकर एक हंडी में रख लिया जाए और महीने के अंत में गांव-भर का अन्न एकत्र कर बेंचा जाए, तो उसी अर्थ से एक शिक्षक रखकर वे अपने बालकों को प्रारंभिक शिक्षा दे सकते हैं।”   लेखक का चिंतन यहां पर सराहनीय है। यह बीसवीं सदी के चौथे दशक में लिखा गया उपन्यास है, जिसके चार वर्ष बाद, सन 1937 में गांधी जी ने अपने पत्र- ‘द हरिजन’ में लेखों की एक श्रृंखला प्रकाशित की और एक शिक्षा योजना का प्रस्ताव किया। निराला के द्वारा सुझाया गया तर्क आज भी प्रासंगिक है। ...

हिंदी कविता का विकास और निराला pdf link

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हिंदी कविता का विकास और निराला    योगेश कुमार मिश्र https://drive.google.com/file/d/1Ret3siCwGAqGX2Pibq4Yx27oUIk5XgIe/view?usp=drivesdk