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तुलसीदास की रचनाएं : ट्रिक सहित

  कविकी बैरी गीता राम सभी 7 कांड वाली कृतियां कवि कवितावली बैरी बैरवे रामायण गीता गीतावली  राम रामचरितमानस।  मंगल मानस रामलला का सभी प्रबंध काव्य कृतियां जानकी मंगल पार्वती मंगल रामचरितमानस रामलला नहछू

हिंदी दिवस प्रश्नोत्तरी 2024

 Hindi Quiz एक कदम हिंदी की ओर। https://forms.gle/EJEoDJgdQppfgDR46 एक हृदय हो भारत जननी। इस प्रश्नोत्तरी में प्रतिभाग कर अपने हिंदी के ज्ञान को परखें और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में योग देते हुए इसे दूसरों तक पहुंचाएं जिससे इसकी जानकारी अधिक लोगों तक पहुंच सके। जय हिंद, जय हिंदी।।

भीष्म साहनी के नाटक : ट्रिक सहित

  हक मामु रंग आलम  ह : हानूश 1977 क : कबीरा खड़ा बाजार में 1981 मा : माधवी 1985 मु : मुआवजे  1993 रंग : रंग दे बसंती चोला 1998 आ : आलमगीर 1999

जयशंकर प्रसाद के नाटक : ट्रिक सहित

  सकल करुणा प्राय रावि अजनका  स : सज्जन 1910 कल : कल्याणी परिणय 1912 करुणा : करुणालय 1912 प्राय : प्रायश्चित 1913 रा : राज्यश्री 1915 वि : विशाख 1921 अ  : अजातशत्रु 1922 जन : जनमेजय का नागयज्ञ 1926 का : कामना 1927 प्रमुख नाट्य कृति *स्कंदगुप्त 1928 *चंद्रगुप्त 1931 *ध्रुवस्वामिनी 1933 # एक घूंट (1929) एकांकी

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के उपन्यास : ट्रिक सहित

  बचपना (न +आ) :  (कुल चार उपन्यासों के नाम संक्षेप में) ब : बाणभट्ट की आत्मकथा(1946) च : चारूचंद (1963) पन : पुनर्नवा (1973) आ : अनमदास का पोथा (1976)

AI के दौर में शिक्षक की भूमिका

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AI और औद्योगिक सभ्यता के इस दौर में मानवीय संवेदना और मूल्यों को बचाने में शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। तकनीकी प्रगति ने हमें ऐसे दौर में ला खड़ा किया है, जहाँ यंत्रों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का प्रभाव हमारे जीवन के हर पहलू पर दिखाई देता है। AI तेजी से बढ़ते समाज के लिए सूचनाओं का भंडार उपलब्ध करा सकता है, और बिना थके, बिना रुके काम कर सकता है। लेकिन क्या वह वास्तव में शिक्षक की जगह ले सकता है? इस पर विचार करना अनिवार्य हो जाता है। मनुष्य के जीवन में शिक्षक केवल सूचनाओं के आदान-प्रदान का साधन नहीं होता, वह मानवता का संरक्षक भी होता है। यंत्रों की दुनिया में उलझा हुआ मनुष्य अपनी संवेदनाओं को धीरे-धीरे खोता जा रहा है, और ऐसे समय में शिक्षक की भूमिका और भी गहरी हो जाती है। शिक्षक केवल तथ्यों और सिद्धांतों को नहीं पढ़ाता, वह छात्रों को सही और गलत का भेद करना सिखाता है। उसकी जिम्मेदारी केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि जीवन के उन मूल्यों का संचार करना है जो मनुष्य को एक संवेदनशील और जागरूक नागरिक बनाते हैं।   AI बिना थकावट के असीमित मात्रा में जानकारी दे सकता है, लेकिन वह मा

मित्रता (निबंध) : आचार्य रामचंद्र शुक्ल

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जब कोई युवा पुरुष अपने घर से बाहर निकलकर बाहरी संसार में अपनी स्थिति जमाता है, तब पहली कठिनता उसे मित्र चुनने में पड़ती है। यदि उसकी स्थिति बिल्कुल एकान्त और निराली नहीं रहती तो उसकी जान-पहचान के लोग धड़ाधड़ बढ़ते जाते हैं और थोड़े ही दिनों में कुछ लोगों से उसका हेल-मेल हो जाता है। यही हेल-मेल बढ़ते-बढ़ते मित्रता के रूप में परिणत हो जाता है। मित्रों के चुनाव की उपयुक्तता पर उसके जीवन की सफ़लता निर्भर हो जाती है; क्योंकि संगति का गुप्त प्रभाव हमारे आचरण पर बड़ा भारी पड़ता है। हम लोग ऐसे समय में समाज में प्रवेश करके अपना कार्य आरम्भ करते हैं जबकि हमारा चित्त कोमल और हर तरह का संस्कार ग्रहण करने योग्य रहता है, हमारे भाव अपरिमार्जित और हमारी प्रवृत्ति अपरिपक्व रहती है। हम लोग कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान रहते हैं जिसे जो जिस रूप में चाहे, उस रूप का करे- चाहे वह राक्षस बनावे, चाहे देवता। ऐसे लोगों का साथ करना हमारे लिए बुरा है जो हमसे अधिक दृढ़ संकल्प के हैं; क्योंकि हमें उनकी हर एक बात बिना विरोध के मान लेनी पड़ती है। पर ऐसे लोगों का साथ करना और बुरा है जो हमारी ही बात को ऊपर रखते हैं; क

हिंदी की पहली कहानी : विचार एवं विस्तार

  हिंदी साहित्य के इतिहास पर गौर करें तो पाएंगे कि हिंदी की प्रथम कहानी को लेकर असमंजस की स्थिति दिखाई देती है। काफी समय तक किशोरीलाल गोस्वामी की कहानी 'इंदुमती' को पहली कहानी माना जाता रहा, लेकिन बाद में यह ज्ञात होने पर कि वह शेक्सपियर के टेम्पेस्ट नाटक का अनुवाद प्रतीत होती है। तब छत्तीसगढ़ मित्र में प्रकाशित कहानी एक टोकरी भर मिट्टी को हिंदी की प्रथम कहानी का दर्जा।मिला। इसके अतिरिक्त भी कुछ कहानियों के नाम पहली कहानी के रूप में कुछ आलोचकों ने उल्लिखित किया है। उनमें से आचार्य रामचंद्र शुक्ल की कहानी ग्यारह वर्ष के समय को भी स्थान दिया गया है, जो 1903 में प्रकाशित हुई। लेकिन प्रथम कहानी के रूप में आज सर्वाधिक स्वीकृति जिस कहानी को मिली, आइए हम उसे पढ़ते हैं,... एक टोकरी-भर मिट्टी : माधवराव सप्रे किसी श्रीमान् जमींदार के महल के पास एक गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। जमींदार साहब को अपने महल का हाता उस झोंपड़ी तक बढ़ाने की इच्छा हुई, विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई जमाने से वहीं बसी थी; उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोंपड़ी में मर गया था। पतोहू

अटल बिहारी वाजपेई की कविताएं

कदम मिलाकर चलना होगा बाधाएं आती हैं आएं  घिरें प्रलय की घोर घटाएं, पांवों के नीचे अंगारे,  सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं, निज हाथों से हंसते-हंसते,  आग लगाकर जलना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा। हास्य-रुदन में, तूफानों में,  अमर असंख्यक बलिदानों में, उद्यानों में, वीरानों में, अपमानों में, सम्मानों में, उन्नत मस्तक, उभरा सीना,  पीड़ाओं में पलना होगा ! कदम मिलाकर चलना होगा। उजियारे में, अंधकार में,  कल कछार में, बीच धार में, घोर घृणा में, पूत प्यार में,  क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में, जीवन के शत-शत आकर्षक,  अरमानों को दलना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा। सम्मुख फैला अमर ध्येय पथ, प्रगति चिरन्तन कैसा इति अथ, सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ, असफल, सफल समान मनोरथ, सब कुछ देकर कुछ न मांगते, पावस बनकर ढलना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा। कुश कांटों से सज्जित जीवन,  प्रखर प्यार से वञ्चित यौवन, नीरवता से मुखरित मधुवन,  पर-हति अर्पित अपना तन-मन, कुश कांटों से सज्जित जीवन,  प्रखर प्यार से वञ्चित यौवन, नीरवता से मुखरित मधुवन,  पर-हति अर्पित अपना तन-मन, जीवन को शत-शत आहुति में,  जलना होगा, गलना होगा। कदम मिलाकर चलन

रामचरितमानस में मानव-पर्यावरण संबंध

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पर्यावरण आज के समय का चर्चित शब्द है, बल्कि यह वर्तमान में स्त्री, दलित, आदिवासी, बाल, वृद्ध के सदृश अब विमर्श के दायरे में है। इधर औद्योगिक सभ्यता के प्रभाव में इस नए विमर्श को जन्म दिया। समीक्षा और शोध का नया प्रतिमान इससे गढ़ा जा सकता है। जिस प्रकार से स्त्रीवादी समीक्षा में प्रत्येक वस्तु को स्त्रियों की दृष्टि से देखे जाने की कोशिश की जाती है, उसी प्रकार से प्रत्येक वस्तु को पर्यावरण के नजरिए से भी देखे जाने की आवश्यकता है। भारतीय बाजार में पर्यावरण के अनुकूल बनाए गए उत्पादों को ‘इको-मार्क’ दिया जाता है, इसी प्रकार से पर्यावरण के प्रति सजग साहित्य को भी ‘इको-मार्क’ दिए जाने का प्रचलन शुरू किया जाना चाहिए। पर्यावरण के प्रति बढ़ती बेरुखी को कम करने की दिशा में यह असरदार कदम होगा। समय के साथ बदले मानव- पर्यावरण के संबंध को सुधारने की दिशा में यह एक सही शुरुआत हो सकती है। इस औद्योगिक सभ्यता में पलने-बढ़ने वाला मानव सभी को अपनी सुविधा के लिए प्रयोग करने का आदी हो गया है। उसकी लालच जितनी बढ़ रही है, उसमें संवेदना का स्तर उतना ही कम होता जा रहा है। वह लगातार पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहा है,