स्वतंत्रता पूर्व शिक्षा- व्यवस्था और निराला के उपन्यास
योगेश कुमार मिश्र, शोधार्थी, हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा महाराष्ट्र- 442001 प्रकाशित शोध पत्र दुनिया को बदलने का सबसे शक्तिशाली हथियार शिक्षा है- यह मानना है महान विचारक, नोबेल पुरस्कार विजेता नेल्सन मंडेला का। शिक्षा वह आधार है, जिस पर किसी देश तथा उसके प्रत्येक नागरिक का विकास निर्भर करता है। 2 फरवरी,1835 को लार्ड मैकाले ने अपना महत्वपूर्ण ‘स्मरण-पत्र’ लिखा। उसने भारतीय साहित्य के संदर्भ में लिखा कि- “यूरोप के एक अच्छे पुस्तकालय की एक आलमारी का एक कक्ष, भारत और अरब के समस्त साहित्य से अधिक मूल्यवान है।” इस वाक्य में मैकाले का भारतीय शिक्षा एवं साहित्य के प्रति तिरस्कार भाव तथा यूरोपीय साहित्य को श्रेष्ठ साबित करने का भाव निहित है। लेकिन यह वाक्य तत्कालीन भारतीय शिक्षा के यथार्थ को भी समझने में सहायक है। भारतीय शिक्षा को गर्त में डूबोने के लिए विदेशी शासकों ने भी कम योग नहीं दिया। जहाँ देशी राज्यों के समाप्त होने से उन राज्यों पर आश्रित शिक्षण-संस्थानों को आर्थिक सहायता मिलना बंद हो गई, वहीं अंग्रेजों ने अपनी भाषा की शिक